पंडित जवाहरलाल नेहरू ( इंदौर में सन् 1957)
मालवा में आकर मन मानों तरोताज़ा हो उठा। यहाँ जब कभी आता हूँ मन को बेहद ही सुकून मिलता है। मालवा की माटी में शांति का भाव झलकता है। मालवा में इतनी मिठास है कि यहाँ आकर मन खिल उठता है।
मालवा में आकर मन मानों तरोताज़ा हो उठा। यहाँ जब कभी आता हूँ मन को बेहद ही सुकून मिलता है। मालवा की माटी में शांति का भाव झलकता है। मालवा में इतनी मिठास है कि यहाँ आकर मन खिल उठता है।