कर्नल सी.के नायडू
इंदौर को क्रिकेट कर्नल सी.के. नायडू के नाम से भी जाना जाता है। आजादी से पूर्व में बनी पहली भारतीय क्रिकेट टीम के पहले कप्तान के रूप में सन् 1932 में इंग्लैंड के विरुद्ध खेले। पद्मभूषण से भी अलंकृत हुए।
इंदौर को क्रिकेट कर्नल सी.के. नायडू के नाम से भी जाना जाता है। आजादी से पूर्व में बनी पहली भारतीय क्रिकेट टीम के पहले कप्तान के रूप में सन् 1932 में इंग्लैंड के विरुद्ध खेले। पद्मभूषण से भी अलंकृत हुए।
डॉ. एस. के. मुखर्जी ने जनस्वास्थ्य के लिए स्वयं को समर्पित किया। वे इतने प्रसिद्ध हुए कि इंदौर उनके नाम से जाना जाने लगा। उन्होंने अपनी विशिष्ट पहचान से चिकित्सक के भगवान स्वरूप को साकार किया।
सेठ जगन्नाथ ने प्रखर राष्ट्रवादी के रूप में औद्योगिक एवं सामाजिक विकास की दृष्टि से अपनी विशिष्ट पहचान बनाई। महिला शिक्षा के वे प्रबल समर्थक रहे। दान, धर्म, एवं परोपकारी सेवा कार्यों के लिए वे सदैव तत्पर रहे।
इंदौर को देश विदेश में सर सेठ हुकुमचंद की नगरी के रूप में भी जाना जाता है। इंदौर को औद्योगिक नगरी बनाने में उनका उल्लेखनीय योगदान रहा। धार्मिक एवं समाज सेवा के कार्यों में आप सदैव अग्रणीय रहे।
होलकर स्टेट में प्रधानमंत्री के रूप में सिरेमल बाफना ने अपनी सक्रिय भूमिका निभाई। राज दरबार में उनकी सलाह मायना रखती थी। विशेष रूप से उद्योग जगत एवं शहर के विकास के लिए अपने महत्वपूर्ण कार्य किए।
इंदौर शहर के संस्थापक के रूप में राव नंदलाल चौधरी (जमींदार) को जाना जाता है। सरस्वती नदी किनारे, इंद्रेश्वर मंदिर के समीप से ही उन्होंने इंदौर में बसाहट प्रारंभ की। अनेक परिवारों को उन्होंने इंदौर में बसाया।
होलकर राज्य की जनता के सभी प्रकार के दुःख दर्दों में शामिल यशवंतराव होलकर ने इंदौर को आदर्श और सर्वसुविधा संपन्न नगर बनाने में स्वयं को समर्पित कर दिया। उन्होंने सामाजिक क्रांति का सूत्रपात किया।
तुकोजीराव होलकर को इंदौर के वर्तमान स्वरूप के प्रणेता के रूप में जाना जाता है। जनता की भलाई के लिए उन्होंने कई कार्य किए। खासतौर पर शहर की जल व्यवस्था को सुचारू करने में उनकी विशेष भूमिका रही।
शिवाजीराव होलकर बड़े ही सटीकतम एवं क्रांतिकारी निर्णय लेने के लिए प्रसिद्ध हुए। उनके राज में चाँदी के सिक्के भी चलन में आए। खास तौर पर किसानों की भलाई के लिए भी उन्होंने उल्लेखनीय कार्य किए।
मल्हाररावजी, होलकर राजवंश के पहले राजकुमार थे जिन्होंने इंदौर शहर पर शासन किया। भारत में मराठा राजवंश को फैलाने में उनके योगदान के लिए पेशवाओं की ओर से उन्हें इंदौर की बागडोर मिली थी।