डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (इंदौर में सन् 2011)

इंदौर में आकर मुझे सदैव बहुत अच्छा लगता है। यहाँ के लोगों में आत्मीयता का भाव झलकता है। इंदौरवासी अपने स्वभाव की दृष्टि से बड़े ही स्नेही एवं व्यावहारिक होते हैं। यहाँ बार बार आने को मन करता है।

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दलाई लामा (इंदौर में सन् 2009)

इंदौर आकर मुझे सुखद अनुभूति हुई है। प्रसन्नता है मुझे यहाँ के लोगों से मिलने का अवसर मिला। यहाँ का आतिथ्य मेरे लिये स्मरणीय रहेगा। स्नेह एवं प्रेमपूर्ण भाव प्रदर्शित करने के लिए मैं धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ

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अमिताभ बच्चन (इंदौर में सन् 2008)

इंदौर की मेहमान नवाज़ी से में अभिभूत हूँ। यहाँ जो प्यार एवं स्नेह मुझे मिला, वह मेरे लिये यादगार रहेगा। मेरे लिये सुखद अनुभूति का पल है कि आप मुझे इतना प्यार करते हैं। स्नेह के लिए मैं आपका शुक्रगुजार हूँ।

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अटल बिहारी वाजपेयी (इंदौर में सन् 2008)

इंदौर आकर सदैव ही सुखद अनुभूति होती है। इंदौर एक पारिवारिक दृष्टिकोण का शहर है। यह आकर ऐसा लगता है मनों अपने परिवार में आया हूँ। अपनेपन का भाव जो यहाँ छिपा है, वह कहीं देखने को नहीं मिला।

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सचिन तेंदुलकर (इंदौर में सन् 2001)

इंदौर खासतौर पर क्रिकेटरों के लिए एक परंपरागत शहर है। इंदौर ने देश को अनेक मशहूर क्रिकेटर दिये हैं। यहाँ की संस्कृति में मुझे बेहद अपनापन लगता है। अपने घर की तरह अनुकूलता का वातावरण दिखाई देता है।

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जान मेजर (इंदौर में सन् 1993)

इंदौर में आकर मुझे प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। यहाँ आने से पूर्व जैसा इसके बारे में सुना, वैसा ही पाया। मैं इंदौर वासियों के आदरभाव हेतु धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ।

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घनश्यामदास बिड़ला ( इंदौर में सन् 1977)

देवी अहिल्या की नगरी में आकर मुझे बेहद अच्छा लगा। परंपराओं का शहर है इंदौर। यहाँ के जनमानस में एक विशेष ऊर्जा का आभास होता है। ऊर्जावान लोग ही स्वयं और देश की तकदीर बदलने की क्षमता रखते हैं।

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जय प्रकाश नारायण (इंदौर में सन् 1975)

इंदौर ऐसा शहर हैं जहाँ सभी परंपराओं के लोग मिल जाते हैं। ये लघु भारत की तरह ही है। यहाँ की संस्कृति मानवीय है। परंपरा व संस्कृति का अनूठा मेल देखने को मिलता है। व्यवहार कुशलता में यहाँ के लोग आगे हैं

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आचार्य विनोबा भावे (इंदौर में सन् 1960)

इंदौर एक सौम्य नगरी है। सर्वोदय की दृष्टि से इंदौर की भूमि उपजाऊ है। एक बार जो आ जाए उसका यहाँ से जाने का मन नहीं करता। यहाँ की संस्कृति मैं ऊर्जा का भाव परिलक्षित होता है।

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पंडित जवाहरलाल नेहरू ( इंदौर में सन् 1957)

मालवा में आकर मन मानों तरोताज़ा हो उठा। यहाँ जब कभी आता हूँ मन को बेहद ही सुकून मिलता है। मालवा की माटी में शांति का भाव झलकता है। मालवा में इतनी मिठास है कि यहाँ आकर मन खिल उठता है।

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