
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ही इंदौर की कपड़ा मिलों ने राष्ट्रीय उत्पादन में खास योगदान दिया था। युद्धोपरांत कपड़ों की मांग निरंतर बढ़ती जा रही थी। उधर देश में स्वदेशी आंदोलन की प्रष्ठभूमि तैयार हो रही थी। ऐसी स्थितियों में इंदौर में सन् 1916 से 1925 के मध्य एक दशक से भी कम अवधि में निजी क्षेत्र में 5 बड़ी कपड़ा मिलों की स्थापना हुई, जिन पर निजी क्षेत्र से लगभग एक करोड़ अड़तालीस लाख रू. की पूँजी लगाई गई। मिलों की स्थापना के बाद इंदौर नगर भारत के प्रमुख वस्त्र उत्पादक केंद्रों में गिना जाने लगा। पूर्व स्थापित रेल्वे ने इन्हीं मिलों के लिए रक्तधमनी का कार्य किया। नगर के हजारों लोगों को रोजगार मिला व नगर में कपड़ा व्यापार बढ़ा। इंदौर में लट्ठा, लंबे वस्त्र, चेक्स, सफेद तथा खाकी ड्रिल, रूमाल, तौलिए, धोतियों एवं सड़ियों का प्रमुख रूप से उत्पादन होता था।