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विकृतियों को दूर करने के लिए जन्मजात विकृति जागरुकता माह का आयोजन

भारत शासन के निर्देशानुसार ‘जन्मजात विकृति जागरुकता दिवस’ 3 मार्च से सम्पूर्ण राज्य के साथ-साथ इंदौर जिले में भी ‘जन्मजात विकृति जागरुकता माह’ मनाया जा रहा है। इसका उ‌द्देश्य सामुदायिक स्तर पर यह जागरुकता फैलाना है कि जन्म विकृतियों की शीघ्र पहचान, प्रभावी और समय पर उपचार यदि सुनिश्चित किया जाए तो बच्चे में होने वाली जन्मजात विकृतियों की तीव्रता को कम किया जा सकता है। इसके लिए जिले में सामुदायिक स्तर पर एवं स्वास्थ्य संस्थाओं में विभिन्न गतिविधियों का आयोजन किया जा रहा है। इसमें मुख्यतः आडे़-तिरछे पैर, जन्मजात हृदयरोग, कटे होंठ, फटे तालू तथा मूक-बधिर (0 से 05 वर्ष) से संबंधित विकृतियों को प्रमुखता से उपचारित किया जाएगा। इसके लिए जिला अस्पताल में हर मंगलवार को क्लब-फूट क्लिनिक का संचालन अनुश्का फाउंडेशन की मदद से किया जा रहा है। सभी प्रसव केन्द्रों पर संबंधित स्टाफ को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। सामुदायिक स्तर पर जन-जागरुकता उत्पन्न करने के लिए आशा कार्यकर्ताओं को प्रेरित किया जा रहा है कि वे समुदाय में इस यह बताए कि किशोरी बालिकाओं को संतुलित आहार दिया जाए, एम.आर. का टीका लगवाया जाए तथा विवाह के उपरांत महिला को फोलिक एसिड की गोली दी जाए तो स्पाईनल से संबंधित जन्मजात विकृतियों, आड़े-तिरछे पैर, जन्मजात हृदयरोग, कटे होंठ, फटे तालू तथा मूक-बधिर (0 से 05 वर्ष) से बचा जा सकता है। वर्ष 2005 में हुए एक अध्ययन के अनुसार प्रत्येक एक हजार जीवित जन्म पर 08 बच्चे जन्मजात हृदयरोग, 04.01 बच्चे न्यूरलट्यूब विकृति, 06 बच्चे जन्मजात मूक-बधिरता, 0.93 बच्चे कटे होंठ-फटे तालू, 02 बच्चे आडे़-तिरछे पैर तथा 10 हजार जीवित जन्म पर 01 बच्चा जन्मजात मोतियाबिंद से प्रभावित हो सकता है। यदि हम जन्मजात विकृतियों की शीघ्र पहचान, सही स्वास्थ्य व्यवाहारों को प्रोत्साहन दें एवं समय पर उपचार करें तो इन समस्याओं से काफी हद तक बचा जा सकता है। प्रायः यह देखने में आता है कि यदि बच्चा बोलने में विलंब कर रहा है तो उसे एक सामान्य प्रक्रिया मानकर अभिभावक उसे अनदेखा कर देते हैं, जो कि बाद में गंभीर रुप धारण कर लेता है। यदि बच्चे के जन्म के समय पालकों को जन्म के समय कोई भी असामान्यता दिखती है, तो उसे ‘जिला अस्पताल स्थिति जिला शीघ्र हस्तक्षेप केन्द्र’ (D.E.I.C.) में अवश्य लेकर जाएं।

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