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प्राइवेट होस्टलों की गिनती ही नहीं, एसडीएम कर रहे जांच, एक दर्जन से ज्यादा को नोटिस थमाया

दिव्यांग बच्चों की मौत के बाद मध्य प्रदेश शासन के विभागीय उच्च अधिकारी ने सख्त निर्देश जारी किए हैं। इंदौर जिले में लगभग 201 सरकारी आश्रम व होस्टल संचालित है। यहां दिव्यांग बच्चों, बुजुर्गों, लावारिस व अनाथ बच्चों के साथ पढऩे वाले छात्रों को भी शरण दी जाती है, वहीं निजी होस्टलों की प्रशासन के पास गिनती ही नहीं है। दिव्यांगजन कल्याण योजनाओं में प्रदेश में अस्थिबाधित, दृष्टिबाधित, श्रवणबाधित एवं बौद्धिक रूप से अविकसित बालक-बालिकाओं के शिक्षण, प्रशिक्षण, रोजगार, पुनर्वास हेतु शासकीय-अशासकीय संस्थाओं के माध्यम से लगभग 52 आश्रम एनजीओ द्वारा संचालित हो रहे हैं। इनके अंतर्गत विभिन्न कार्यक्रमों और योजनाओं का संचालन किया जा रहा है। इनके खाने-पीने की व्यवस्थाओं को लेकर भोपाल से दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। इंदौर में हुई हृदय विदारक घटना के बाद मध्य प्रदेश सरकार भी एक्शन मोड में आ गई है। महिला एवं बाल विकास विभाग और सामाजिक न्याय विभाग के अंतर्गत बच्चों-बुजुर्गों के लिए वृहद्ध स्तर पर आश्रम संचालित किए जा रहे हैं। लगभग 52 संस्थाएं हैं, लेकिन इनकी समय पर जांच नहीं होती। सरकारी नियमों के अनुसार हर महीने यहां निवासरत बच्चों की मेडिकल जांच के साथ-साथ संस्था में निरीक्षण करना अनिवार्य है, लेकिन दोनों ही विभागों के अधिकारी सिर्फ खानापूर्ति करते आ रहे हैं। नतीजा यहां की व्यवस्थाओं को लेकर लापरवाही बढ़ती जा रही है। हाल ही में इंदौर के युगपुरुष धाम मानसिक-दिव्यांग छात्रावास आश्रम में 6 बच्चों की मौत का मामला प्रकाश में आया है। यह भी संज्ञान में आया है कि संस्थाओं में बच्चों को उपलब्ध कराया जाने वाला भोजन एवं पेयजल उचित गुणवत्ता का नहीं होने के कारण दिव्यांग बच्चे अत्यधिक बीमार हो रहे हैं। महिला एवं बाल विकास विभाग अधिकारी व सामाजिक न्याय विभाग के अधिकारी ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई है, वहीं हाल ही में कई घटनाओं के बाद एसडीएम को भी निर्देश दिए गए थे कि वह अपने-अपने क्षेत्र के संस्थानों पर नजर रखें और दौरा करें, लेकिन निर्वाचन की ड्यूटी और अन्य प्रोटोकॉल में व्यस्त होने के कारण अभियान रोकना पड़ गया था, जिसका खामियाजा इन बच्चों को भुगतना पड़ा। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार उक्त संस्थाओं में अधिकारी झांकने भी नहीं जाते हैं। ज्ञात हो कि इस घटना के दौरान 60 बच्चे मौत के मुंह में जाते-जाते बचे हैं। अब इस तरह की संचालित हो रही संस्थाओं में यदि कोई लापरवाही सामने आई तो कड़ी कार्रवाई झेलनी होगी। आयुक्त के पत्र के अनुसार संज्ञान में आया है कि इंदौर जिले में सामाजिक न्याय विभाग के अंतर्गत 52 से अधिक सरकारी व निजी संस्थाएं कार्यरत हैं, जो की दिव्यांगों के साथ-साथ नशामुक्ति के लिए कार्य कर रही हैं। बच्चों की सुरक्षा एवं रख-रखाव के लिए नियमों का कड़ाई से पालन किया जाए, इसके लिए दिशा निर्देश जारी किए गए हैं। शासन ने पूरे प्रदेश के संस्थानों को निर्देश जारी करते हुए आगाह किया है कि बच्चों के लिए तैयार किए जाने वाले भोजन की कच्ची सामग्री के संग्रहण एवं सामग्री की जांच की जाए एवं भोजन निर्माण पश्चात उसकी गुणवत्ता की भी नियमित रूप से जांच कराई जाए। बच्चों हेतु शुद्ध पेयजल की व्यवस्था के साथ-साथ पेयजल के स्त्रोत, पानी की टंकी, वाटर कूलर की सफाई एवं वाटर फिल्टर की नियमित रूप से जांच कराई जाए। संस्था में निवासरत बच्चों की स्वास्थ्य जांच हेतु शासकीय अस्पतालों से डॉक्टरों की ड्यूटी लगाई जाए, जो छात्रावास में जाकर बच्चों का नियमित मासिक स्वास्थ्य परीक्षण करेंगे। उक्त स्वास्थ्य जांच की रिपोर्ट का रजिस्टर तैयार किया जाए एवं आवश्यकतानुसार दवाइयां भी उपलब्ध कराई जाए। संस्थाओ में साफ-सफाई का विशेष रूप से ध्यान रखा जाए। नियमित रूप से आवश्यक कीटनाशक का छिडक़ाव तथा बीमारी से रोकथाम के उपाय किए जाए। संस्थाओं में दानदाताओं से प्राप्त होने वाली राशि, सामान और खाद्य पदार्थ का लेखा-जोखा रखने के लिए रजिस्टर मेंटेन किया जाए। संस्था में आने-जाने वाले समस्त व्यक्तियों की संक्षिप्त जानकारी का रजिस्टर आवश्यक किया गया है। मध्य प्रदेश सरकार के आयुक्त सामाजिक न्याय एवं दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग, रामराव भोंसले ने पत्र जारी कर विभागों को आवश्यक दिशा निर्देश भी दिए हैं।

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