
नर्मदा घाटी के मार्ग पर व्यापार-व्यवसाय को उन्नत करने की दृष्टि से संभवतः इस स्थान का महत्व बढ़ता चला गया। ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार यह कहा जा सकता है कि मराठों के मालवा में आगमन के साथ, तब के इंदौर क्षेत्र का महत्व बढ़ता गया। कहीं कहीं उल्लेख मिलता है कि यहाँ से 24 किलोमीटर दूर स्तिथ कम्पेल परगने के भू-स्वामियों एवं जमींदारों का ध्यान भी इंदौर क्षेत्र की ओर आकर्षित हुआ। तब कम्पेल को परगने की मान्यता थी। इंदौर के एक व्यवस्थित नगर के रूप में स्थापना की कोई निश्चयात्मक तिथि या वर्ष विवरण उपलब्ध नहीं है। ऐसी संभावना लगती है कि एक बस्ती धीरे धीरे आकार लेती रही जो बाद में कस्बा, परगना और राजधानी बनी। एक पृथक, स्वात्तय सत्ता प्रमुख के रूप में होलकरों का आधिपत्य इंदौर पर वर्ष 1730 में कायम हुआ, जब पेशवाओं ने उन्हें जागीर प्रदान की।