
राम का नाम ही इस देश की सनातनता और सार्वभौमिकता है। राम ही सत्य, सनातन और शाश्वत है। जन्म से लेकर मृत्यु तक के प्रसंगों में भी राम नाम ही सत्य होता है। राम का चरित्र काफी उदार है। जिसने भी स्वयं को श्रीराम से जोड़ा है, उसने हनुमान की तरह अद्भुत काम किए हैं। वैष्णव जन वही है जो दूसरों की पीड़ा दूर करें। राम के चरित्र में पुरूषार्थ, प्रेम, ममता, समता और एकता के सूत्र दिखाई देते हैं। राम के बिना इस सृष्टि और भारत भूमि की कल्पना नहीं की जा सकती। राम और कृष्ण का अवतरण सिर्फ भारत भूमि पर ही हो सकता है क्योंकि दुनिया के अन्य किसी देश की इतनी पुण्याई और पवित्रता नहीं हो सकती। तुलसीराम सविता रघुवंशी, रेवतसिंह रघुवंशी, सुश्री शतांशी रघुवंशी, वत्सल दुबे, ओमप्रकाश राठौर, श्यामसिंह ठाकुर, अशोक वानपुरे, देवकरण यादव, नारायणसिंह बघेल, गौरीशंकर मालवीय, रामसिंह राजपूत एवं बाबूसिंह राजपूत सहित अनेक भक्तों द्वारा व्यासपीठ पूजन के साथ हुआ। इसके पूर्व भक्तों ने रामचरित मानस का भी पूजन किया। डॉ. सुरेश्वरदास ने कहा कि राम इस देश की अस्मिता और गौरव के पर्याय है। उनके समूचे जीवन चरित्र में कहीं भी कोई दोष नहीं है। यह निर्दोषता ही उन्हें पूजनीय और वंदनीय बना गई। हमारे पतन के लिए कोई और जिम्मेदार नहीं हो सकता। हमारा अज्ञान, भ्रम, भय, संशय ही हमारा नाश करता है। धरती पर कोई और हमारा अहित कर ही नहीं सकता। संशय से जड़ता आती है। अल्पज्ञता, अकर्मण्यता और भीतर का प्रमाद ही हमारे सबसे बड़े शत्रु हैं। हमारा अंतःकरण श्रद्धा संपन्न होगा तो हमारे अंदर श्रेष्ठ विचारों की ग्राह्यता होगी। भगवान श्रीराम प्रेम की मूर्ति और प्रेम के पर्याय हैं। शबरी, केवट और वनवासियों के बीच जाकर उन्होंने प्रेम ही बांटा है।
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