देश और दुनिया में इस तिथि को इंदौर से ज्यादा याद रखा जाता है और ख़ास कर हिन्दी जानने, समझने और अपनाने वाले लोगों के बीच में तो महत्त्वपूर्ण है इंदौर से जुड़ी यादें। इंदौर में 20 अप्रैल 1935 से अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रारंभ हुआ था, जिसमें भाग लेने के लिए देशभर के हिन्दी के स्थापित विद्वान, साहित्यकार व कवि इंदौर पधारे थे। इस सम्मेलन की अध्यक्षता महात्मा गांधी को सौंपी गई थी। बापू को इंदौर के नेहरू पार्क में बैठकर ही सबसे पहले हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का विचार आया था।
बापू को यूँ तो हमेशा ही सबने उनकी खादी की धोती में देखा था पर जब वो 20 अप्रैल 1935 को हिन्दी साहित्य समिति के मानस भवन के शिलान्यास के लिए इंदौर आए तो उन्होंने काठियावाड़ी वेशभूषा पहनी थी। इस दौरान उनकी काठियावाड़ी पगड़ी आकर्षण का केंद्र बनी हुई थी। 1935 में महात्मा गांधी इंदौर में 20 से 23 अप्रैल तक ठहरे थे। इस दौरान समिति का 24वां हिन्दी साहित्य सम्मेलन हुआ था, जिसमें गांधी जी सभापति थे। उस वक्त के बिस्को पार्क (नेहरू पार्क) में आयोजित सम्मेलन में उन्होंने फिर राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी की पैरवी की थी।