भारत के पौराणिक आध्यात्मिक नगरों की तरह इंदौर का उद्भव भी रोमांचकारी है। कहा जाता है कि राष्ट्रकूट शासक इंद्र, जिसका कि मालवा पर शासन रहा था, के नाम पर इस नगर का नाम इन्द्रपुर पड़ा जो आगे चलकर इंदूर और फिर इंदौर हो गया। एक अन्य किवंदति के अनुसार 1741 में यहाँ इंद्रेश्वर मंदिर की स्थापना हुई। इस मंदिर के नाम पर इस स्थान का नामकरण पहले इंद्रेश्वर फिर इंद्रपुर और आगे चलकर इंदौर के रूप में प्रसिद्ध हुआ। एक ऐतिहासिक तथ्य के आधार पर यह भी विश्वास किया जाता है कि महाराजा छत्रपति शिवाजी जब दिल्ली से औरंगजेब की कैद से छूटे और दक्षिण की ओर लौट रहे थे, तब वे महाकाल को नमन करने हेतु उज्जैन पधारे थे और लौटते समय चन्द्रभागा के किनारे बसे एक हरे भरे गाँव में ठहरे थे, जो कालांतर में इंदौर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
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