
इस बार पहले चरण के मतदान के अंतिम आंकड़े को जारी करने में हुई ऐतिहासिक देरी एवं दोनों दौरों के आंकड़ों में पूर्व घोषित आंकड़े से लगभग छह प्रतिशत की वृद्धि न केवल चिंताजनक है बल्कि कई संदेहों को जन्म देती है। लचर और पक्षपाती रवैए के कारण चुनाव आयोग की विश्वसनीयता में कमी आना सम्पूर्ण लोकतंत्र और देश की प्रतिष्ठा के लिए नुकसानदेह है। यह बातें स्टेट प्रेस क्लब, मध्यप्रदेश द्वारा आयोजित समूह चर्चा ‘ईवीएम का ईसीजी” में विभिन्न पृष्ठभूमियों से आए विश्लेषकों ने व्यक्त किए। कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय सचिव एवं वरिष्ठ पत्रकार पंकज शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार जयश्री पिंगले, सामाजिक कार्यकर्ता एवं पूर्व प्रशासनिक अधिकारी रामेश्वर गुप्ता एवं सोशल मीडिया इनफ्ल्यूएंसर गिरीश मालवीय ने व्यक्त किए। पंकज शर्मा ने कहा कि आंकड़े जारी करने में अभूतपूर्व देरी और आंकड़ों का अधूरा होना चौंकाने वाला, चिंताजनक और लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ है। जारी आंकड़ों में छह प्रतिशत की वृद्धि ईवीएम पर संदेह पुष्ट करती है। उन्होंने कहा ईवीएम में मैनीपुलेशन संभव है, यह बात सैकड़ों वीडियो, प्रिसाइडिंग ऑफिसरों के नोट और घटनाएं दर्शाती हैं कि ईवीएम असंदिग्ध नहीं है। इलेक्शन कमीशन के कमिश्नर के चयन से सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस को बाहर करना, ऐन चुनाव से पहले चुनाव आयुक्त के इस्तीफे आदि बातें सरकार की मंशा को संदेह में लाती हैं। इलेक्शन कमीशन, सरकार की नीयत पर संदेह होना ही अपने आप में लोकतंत्र के लिए चिंताजनक है। पहले सरकारें विधायक खरीदकर गिराई गईं, और अब तो इंदौर-सूरत की तरह प्रत्याशी ही खरीदे जा रहे हैं। ये संकेत हैं कि जनता अभी ना चेती तो भविष्य में चुनाव होने ही नहीं दिए जायेंगे। इन सब कारगुजारियों से पुराने भाजपाई कसमसा रहे हैं और संघ की छबि भी धूमिल हो रही है। संघ द्वारा अपना शताब्दी वर्ष ना मनाने की घोषणा संघ की मोदी-शाह से मतभेद के ही संकेत हैं। पूर्व एडीएम और अभ्यास मंडल के अध्यक्ष रामेश्वर गुप्ता ने अपने प्रशासनिक अनुभव से बताया कि मतदान प्रतिशत के अंतिम आंकड़े को जारी करने में इतनी देर होने से शंका स्वाभाविक है। उन्होंने चुनाव आयोग की गतिविधियों से बार-बार संदेह पैदा होने पर निराशा जताई। गुजरात का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि वहां भारत निर्वाचन आयोग की बजाए राज्य निर्वाचन आयोग की ईवीएम मशीनें चुनाव हेतु पहुंच गईं थीं। उन्होंने मतदान के एक्जैक्ट आंकड़े दिए जाने की मांग का भी समर्थन किया। वरिष्ठ पत्रकार जयश्री पिंगले ने कहा कि इतना विलम्ब क्यों हुआ, यह जानने के लिए ग्यारह दिनों की स्क्रिप्ट सामने आनी चाहिए। चुनाव आयोग पर सवाल पूरे लोकतंत्र पर सवाल है। आज इलेक्शन कमीशन की वर्किंग दयनीय अवस्था में पहुंच गई है। बहुत खामोशी से देश की बहुत से संवैधानिक संस्थाएं कमज़ोर की जा रही है। इस चुनाव में सवाल सिर्फ विपक्ष का नहीं बल्कि लोकतंत्र का है। ग्यारह दिनों की देरी एक भयावह मंज़र दिखा रही है। बहुसंख्यवाद के चक्कर में लोकतंत्र दरक रखा है। राजनीतिक विश्लेषक गिरीश मालवीय ने कहा कि टेक्नोलॉजी ने हर जगह समय बचाया है, लेकिन चुनाव आयोग ने इस युग में अभूतपूर्व देरी की है। शेषन साहब के ज़माने में शिखर छूने वाले चुनाव आयोग की विश्वासनीयता साल दर साल घट रही है। सत्ता द्वारा मैनिपुलेशन इतना बढ़ रहा है कि आयुक्त के चयन से चीफ जस्टिस की भूमिका समाप्त की गई और अशोक लवासा जैसे आयुक्त से इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर कर दिया गया। उन्होंने कई उदाहरण देकर बताया कि कैसे अनेक बार साबित हुआ है कि ईवीएम हैकेबल है। 19 लाख ईवीएम मशीनें गायब हैं अर्थात बनाने वाली कंपनी से तो निकलीं लेकिन निर्वाचन आयोग तक नहीं पहुंची। ग्यारह दिनों की दिनों की देरी के बाद आंकड़े का प्रतिशत 6% बढ़ा। यदि इन कड़ियों को जोड़ें तो समझ आता है कि क्या खेल संभव है। यदि चुनाव ऐसे ही होने हैं तो लोकतंत्र का क्या अर्थ रह जायेगा ? कार्यक्रम के प्रारंभ में प्रवीण कुमार खारीवाल, गणेश एस. चौधरी, कृष्णकांत व्यास, सुदेश गुप्ता और संतोष रुपिता ने स्वागत किया।संचालन एवं आभार प्रदर्शन आलोक बाजपेयी ने किया।
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